सिवनी – जीवन मे गुरु जो हमे देता है उसका ऋण जीवन पर्यंत हम चुका नही पाते, सिर्फ रावण-कंस के वध के लिए ही भगवान राम-कृष्ण ने अवतार नही लिया अपितु धर्म की स्थापना और जीवन जीने की कला सिखाने के लिए पृथ्वी में आये थे।
उक्ताशय के प्रवचन द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कही महाराज श्री आज नगर के राशि-बाहुबली लॉन में चल रहे अपने ब्रह्मलीन गुरु द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के द्वतीय पुण्यतिथि उनके अनन्य शिष्य पंडित हितेंद्र शास्त्री की सयोजकता में चल रही 108 श्रीमद भागवत कथा एवं पंचदेव पूजन अर्चना में शामिल होने आए थे जहाँ अपार जनसमूह को कृष्णजन्म की कथा सुनाई, इस दौरान महाराज श्री ने कहा कि गुरु का ऋण हम किसी भी वस्तु अथवा कार्य से चुका नहीं सकते उसके बाबजूद भी हमे गुरु सेवा का कार्य करते रहना चाहिए जिससे गुरु का आर्शीवाद सदा हमारे साथ रहता है और हम धर्म मे लगे रहते है, परमात्मा ने धर्म का अधिकार सिर्फ मनुष्यो को दिया है अतः धर्म का पालन करना हमारा प्रमुख कार्य होना चाहिये क्योकि इस लोक में और परलोक में सिर्फ धर्म ही साथ रहता है वही काम आता है। महाराज श्री ने कहा कि भगवान राम-कृष्ण का अवतार सिर्फ रावण और कंस का वध करना नहीं था प्रभु का अवतार इस पृथ्वी पर मुख्य रूप से धर्म की स्थापना के लिए था उनका जीवन ही उनका संदेश था उन्होंने अपने चरित्र के माध्यम से जीवन जीने की कला सिखाई उनके चरित्र को हमे आपने जीवन मे उतारना चाहिए।