सिवनी – तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा, जय हिन्द जैसे नारों को सुनकर युवाओं की आजादी के आंदोलन में रक्तचाप बढ़ जाता था आजादी की लड़ाई मे जिन्होंने योगदान दिया निश्चित ही वे इतिहास् के हस्ताक्षर हो गये और अनेक ऐसे लोग हुए जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी मगर गुमनामी के साये में रहे, सिवनी जिले में रहकर उन्होंने अंत समय तक अपने आपकों देश के लिए समर्पित किया। संजय जैन ने उनके बेटे से बात करते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामभरोस सेमुअल के पुत्र आनंद राज भरोस ने उनके पिता के द्वारा आजादी में दिए गये योगदान के बारे में जानकारी दी।

जब नव युवक आजादी के आंदोलन मे अंग्रेजो की कूटनीति का शिकार हो गये थे उस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामभरोस सेमुअल को आजाद हिन्द फौज सेनानी की तरह से खुफिया विभाग का दायित्व सौपा गया था और इस कार्य को सन 1942-45 के मध्य सिंगापुर, वर्मा रंगून और मलाया जाकर बाखुबी उन्होंने निभाया और महत्वपूर्ण काम किया इस दौरान 3 वर्ष तक भूमिगत रहकर सेमुअल ने तन मन धन से नेताजी को सहयोग किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 2 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान नागासाकी हिरोशिमा में एटमबम गिराया युद्ध समाप्ति के बाद अंगे्रज सरकार ने कटीले तारो के बीच नजर बंद रखा, जब यह बात उस समय के जाने माने वकील सत्रु नेहरू काटजू तक पहुंची तो सन 1946 में केस लड़कर उन्हे मुक्त कराया और सिगापुर में उत्कृष्ट सेना के लिए इनटेलीजेस सब आफिसर का वर्मा, रंगनू और मलाया कमीशन दिया गया। देश को आजादी मिलने के बाद सेमुअल रामभरोस को भारतीय डाकतार विभाग में नियुक्त किया गया इस पद रहते हुए मप्र में सिहोरा, गोविदगढ़, डिडौरी, रीवा, लखनादौन बरघाट में कार्य किया। सन् 1972 में प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने उन्हे ताम्रपत्र से सम्मानित किया। सन् 1973 में मप्र के मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी एवं 1997 में दिग्विजय सिंह ने आजादी की 50 वीं वर्षगांठ पर सम्मानित किया, सेमुअल राम भरोस ने लिखा है कि उन्हें रंगून में एक बार नेताजी – सुभाषचंद्र बोस से हाथ मिलाने का अवसर मिला तथा दूसरी बार 1963 में संन के रूप में देखने और मिलने का सौभाग्य ऽ मिला था लेकिन इस संबंध में उन्होंने किसी को बताने से मना किया था। वैसे तो आपका जन्म बुलेंदखंड के जिला दमोह में हुआ था आप चार भाई तथा संतान के रूप में पुत्र स्व. प्रेमराज भरोस, आनंद राज भरोस तथा पुत्री श्री राजेश्वरी लाल थी सन 1998 में हृदयगति रूक जाने से आपका निधन हो गया। निश्चित ही हम कह सकते है कि विधाता के असूलों के आगे कुछ नहीं कर सकते होनहार विरवान के होते चीकने पात।