सिवनी – प्राचीनकाल में शिक्षा की उत्तम दर्जे की परम्परा थी जिसमें सारे मतभेदो को भुलाकर सभी के बच्चो गुरूकुल में शिक्षा ग्रहण किया करते थे उस दौर में गुरूमाता बच्चो को अपने बच्चो से भी ज्यादा चाहती दुलार करती और गुरू शिष्यों को सभी प्रकार के ज्ञान शिक्षा दिया करते थे सारी विद्याओ में बच्चो को निपुण करते थे उस दौर में ना कोई शिक्षा अधिकारी होता था ना बीआरसी और ना कोई जनशिक्षक आज के दौर में सब कुछ व्यवस्था होने के बाद भी गुरू अपनी गरिमा को खोते जा रहे है अभी वर्तमान में दो दिन पहले हुए एक घटना ने शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया जब एक नन्हे से बच्चे को जिसे शिक्षक को दुलार से प्यार से पढाना चाहिए उसे ऐसा दंड उनके उस रवैये को देखकर नही लगता कि वे शिक्षक है या उस लायक है। इसका बहुत बडा कारण आज के दौर में शिक्षको को जो हद से ज्यादा वेतन दिया जा रहा है वह प्रमुख कारण है। शिक्षको को जिस समय स्कूल पहुॅचना चाहिए उस समय वे अपने घर से स्कूल जाने को निकल रहे है जिस टाईम पर स्कूल की छुटटी होना चाहिए उस समय तक वे अपने घर को पहुॅच जा रहे है। जिसको अपने निजी काम से कही जाना हो एक आवेदन लिखकर स्कूल में छोड आते है कि कोई अधिकारी आया तो उसे दिखाने के लिए कि सर छुटटी पर गए है आवेदन देकर जब कोई नही आया तो दूसरे दिन गुरूजी ने रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर किये और उनका काम भी हो गया और नौकरी भी सुरक्षित उन्हे बच्चो के भविष्य से कोई लेना देना नही और ना ही स्कूल से कोई वास्ता उन्हे तो सिर्फ महिने में मिलने वाली मोटी तनख्वाह से है। इसके लिए नियुक्त जिम्मेदार लोग भी चंद पैसो की चढौत्तरी मिल जाने से अपना ध्यान ऐसे लापरवाह लोगो से हटा लेते है।
सरकार द्वारा बच्चो को सरकारी स्कूलो संख्या बढाने को लेकर अरबो रूपये खर्च किये जा रहे है बच्चो को डेªस किताबे साईकिलो के अलावा बच्चो को मध्यान्ह भोजन और साथ ही स्कालरशिप भी दी जा रही है इसके अलावा अच्छे अंक लाने वाले बच्चो को प्रोत्साहन राशि और भी तरह – तरह के कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाये जाते है लेकिन जिस तरह का रवैया शिक्षको का देखने को मिल रहा है उसे देखने से लगता है हमारा देश विकास की जगह विनाश की ओर ऐसे चंद लापरवाह शिक्षक ले जाने का काम कर रहे है।
प्रशासन को चाहिए कि शिक्षको के लिए अब कठोर कानून बनाये जाये जैसे इनका का भी कार्यकाल पाॅच वर्षो का हो यदि पाॅच वर्ष इनका कार्य संतोषजनक ना हुआ तो ऐसे लापरवाह शिक्षको की सेवा समाप्त हो जानी चाहिए। तो वही लेट आने वाले या बिना कारण लापरवाही बरतने वाले शिक्षको का कम से कम 15 दिन या 25 दिनो को वेतन काटा जाना चाहिए तभी व्यवस्था दुरूस्त होगी। साथ ही जिनकी जिम्मेदारी जिन स्कूलो की माॅनीटरिंग की है वे लापरवाही करते है तो उन्हे भी दंडित किया जाना चाहिए।