सिवनी – 108 श्रीमद भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ एवं गणेश शिव विष्णु सूर्य एवं ललिता अर्चन महायज्ञ का आयोजन शंकराचार्य मंडपम ( राशि बाहुबली ) लाॅन जबलपुर रोड बारापत्थर में पितृपक्ष के पावन पर्व पर परमपूज्य ज्योतिष एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य ब्रम्हलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज के द्वितीय समाराधना के पुण्य अवसर पर 108 श्रीमदभागवत महापुराण महायज्ञ एवं गणेश,सूर्य,विष्णु,शिव एवं ललिता लक्षार्चन यज्ञ का भव्य एवं विशाल आयोजन पूज्य गुरूदेव की पावन जन्म स्थली सिवनी मध्यप्रदेश में किया जा रहा है इस अवसर पर हितेन्द्र शास्त्री ने सोमवार को श्रीकृष्ण जी की बाललीलाओ का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान के जन्म के बाद भगवान के बालस्वरूप का दर्शन करने स्वयं भगवान शंकर कैलाश छोड धरती पर नंद बाबा के यहा वेश बदलकर चले आये थे आगे कथाव्यास ने बताया कि भगवान शंकर ने श्रीकृष्ण जी की चार परिक्रमा लगाई तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर भगवान शंकर से कहा मैने धरती पर दुष्टो का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के उददेश्य से जन्म लिया है भगवान के बालस्वरूप का दर्शन करने जब भगवान शंकर ने रूप बदला लिया आगे श्री शास्त्री ने बताया कि हमे अपने आराध्य या गुरू के दर्शन करने में दिक्कत या परेशानी आ रही हो तो ऐसी दशा में यदि हमें अपना वेश भी बदलना पडे तो उसमें कोई दोष नही लगता है। इस विषय मे कोई विचार नही करना चाहिए। दान करने से अलग शुद्धि होती है हमें मन,कर्म,वचन से कभी भी कोई पाप नही करना चाहिए और हमें भगवान की आराधना मन,कर्म और वचन से शुद्ध होकर करना चाहिए। और जिस समय हमारे अंदर काम,क्रोध मद और लोभ आ जाये समझ लो हमारे अंदर पूतना ने प्रवेश कर लिया है। भगवान ने पूतना के आने पर अपने नेत्र इसलिए बंद लिए क्योकि वह बुरे कर्म के उददेश्य से आई थी इसलिए कभी भी हमें बुरे कर्म करने वालो को देखना भी नही चाहिए। साथ ही भगवान ने पूतना का स्तनपान करते हुए इसलिए मारा क्योकि शास्त्रो में भी वर्णन है कि स्त्रियो पर हाथ नही उठाना चाहिए। हमारे दो नासिका छिद्र होते है जिसमे दाहिने नासिका से स्वर चलने पर कही पर भी शुभ कार्य हेतु नही निकलना चाहिए जब बाया स्वर चले तभी बिना विचार किये कार्य करना चाहिए । शास्त्रो मे पूतना के वध के समय भगवान के ऑख बंद करने के 108 कारण बताये गए। पूतना के बारे में आगे बताया कि त्रेता में पूतना मंथरा थी उस समय भगवान को मर्यादा स्वरूप था इसलिए द्वापर मे भगवान ने पूतना के रूप में उसे मोक्ष प्रदान किया। हमारा मन जब निर्मल होता है तब ही हमें भगवत प्राप्ति होती है। हमें अनुष्ठान करते समय स्थान का चयन करना चाहिए दूसरा समय का ध्यान रखना चाहिए तीसरा यज्ञकर्ता योग्य होना चाहिए उसका खानपान आचार विचार संध्या करने वाला हो इसके अलावा आप जिससे अनुष्ठान करा रहे है उसे विद्या का अनुभव अच्छा होना चाहिए,मंत्रो का शुद्ध उच्चारण करने वाला शुद्ध और सात्विक होना चाहिए तभी यज्ञ कराने वाले को उसका फल मिलता है। इसके अलावा यज्ञ कराने वाले ने जो धन लगाया है वह धन मेहनत और ईमानदारी से अर्जित किया हुआ होना चाहिए ना कि किसी अधर्म से कमाया हुआ हो किसी से रिश्वत या लूट का या किसी के द्वारा छल कपट कर अर्जित किये हुए धन लगाने से भी पुण्य फल की प्राप्ति नही होती है। इसके अलावा हमें चार बार यज्ञ करना चाहिए एक बार नही चार बार हमे अपने जीवन में यज्ञ करना चाहिए तभी हमें पुण्य की प्राप्ति होती है। यज्ञ कहा करना चाहिए जहां नदिया प्रवाहित हो रही हो जहां हिरण विचरण करते हो ऐसी जगह यज्ञ के लिए उचित बताई गई है। कार्यक्रम में अपने पूर्वजो की स्मृति में पोथी रखवाने एवं अन्य यज्ञो में भाग लेने हेतु या किसी भी प्रकार का सहयोग हेतु 9755974899,9451227757 पर सम्पर्क किया जा सकता है।