सिवनी – नगर के बारापत्थर बाहुबली चौक के पास स्मृति लान में भगवान श्री कृष्ण की गौरवशाली गाथाओ लीलाओ का वर्णन कर, श्रीमद भागवत कथा की अविरल गंंगा १४/०४/२०२५ से २०/०४/२०२५ तक प्रवाहित हो रही है। जिसका समय दोपहर ३ बजे से सायं ६ बजे तक का रखा गया है जहां द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी निर्विकल्प स्वरूप महाराज कथा का वाचन कर रहे है। उन्होंने कहा कि भागवत श्रीहरि विष्णु का श्रीविग्रह है, अपने जीवन में भागवत कथा नहीं सुनने वाला आत्मघाती है। सिवनी गंगा और गुरु का परम-पावन-पवित्र स्थान है। हमें गुरू के वचनो में विश्वास होना चाहिए इसके साथ ही कथा सुनने में श्रद्धाभाव होना चाहिए और दीनता का भाव होना चाहिए मन के दोषो पर नियंत्रण होना चाहिए और कथा में निश्चता होना चाहिए।


श्रीमदभागवत की अनंत और अपार महिमा है।
कथाव्यासजी ने आगे बताया कि कि श्रीमद भागवत महापुराण में श्री कृष्ण अपने सम्पूर्ण तेज के साथ निवास करते है यह समुद्रप्रिय श्रीहरि विष्णु का श्री विग्रह है। और यह बड़ा ही विशिष्ट ग्रंथ है। वस्तुतः भगवान श्री कृष्ण को जो देखना चाहे उसको भागवत के रूप में श्री कृष्ण के ही दर्शन होते हैं। श्रीमदभागवत की अनंत और अपार महिमा है। पूर्व जन्मों के सत्कर्मों और भाग्योदय से ही सत्संग संभव हो पाता है। सनातनी प्राणी को अपने जीवन में श्रीमद भागवत की कथा सुनाना अनिवार्य है, जो नहीं सुनता है वह आत्मघाती है। कथा को सुनने वाला सबसे बड़ा दानी होता है। वह राम नाम के हीरा-मोती लुटाते फिरता है।


ब्रह्मा जी से शुरू होने के बाद मैत्रेय ऋषि ने विदुरजी को कथा सुनाई
ब्रम्हचारीजी आगे बताया कि भागवत की कथा सुनने और सुनने की दो परंपरा है। प्रथम परंपरा में सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने नारद जी को और नारद जी ने वेदव्यास जी को सुनाई। फिर वेदव्यास जी ने उसे विस्तारित कर शुकदेव जी को सुनाई। शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई। दूसरी परंपरा में संकर्षण ने सनत्कुमारों को सनत्कुमार ने सांख्यायन जी को उन्होंने बृहस्पति को बृहस्पति ने उद्धव और मैत्रेय जी को मैत्रेय ऋषि ने विदुर जी को कथा सुनाई।


श्रीमद भागवत के प्रमुख चार वक्ता और चार प्रमुख श्रोता माने गए है।

ब्रह्मचारी ने बताया कि श्रीमद भागवत के प्रमुख चार वक्ता और चार प्रमुख श्रोता माने गए है। जिसमें शुकदेवजी-राजा परीक्षित, वेदव्यास जी- शिष्यो, सूत जी-शौनक आदि ऋषि, और मैत्रीय -विदुर के नाम उल्लेखित है।भागवत कथा चार प्रकार की होती है। पहली सात्विक जो 01-02 माह की होती है। जैसे श्री हरि विष्णुजी ने माता लक्ष्मी को सुनाई और फिर माता लक्ष्मी ने श्री हरि विष्णु जी को। दूसरी राजसी कथा जो किसी प्रयोजन से धूमधाम के साथ आयोजित होती है। जैसे अभी हो रही है, तीसरी तामसिक जो साल भर चलती है। जब मन किया जितनी करना हो किया फिर छोड़ दिया। अर्थात मनमर्जी से की जाने वाली कथा। चैथी निर्गुण जो बिना संकल्प के हुई थी और राजा परीक्षित के जीवन के जो सात दिन बचे थे उसे मोक्ष दिलाने और मृत्यु के भय से मुक्त करने के लिए शुकदेव महाराज ने सुनाई थी।

श्रोताओं के प्रकारो का किया वर्णन – कथाव्यास ब्रम्हचारीजी महाराज ने कथा में स्कंद पुराण के अनुसार कथा श्रोताओं के प्रकारों का भी वर्णन किया। कथा के वक्ता के संबंध में बताया कि विरक्त संत-महात्मा, विप्र, वैष्णव, वेद-शास्त्र ज्ञाता, मर्मज्ञ से ही कथा श्रवण करना चाहिए। भागवत शब्द अर्थरूप में पूज्य गुरुदेव ज्योतिष एवं द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु जी महाराज के श्रीमुख से एक श्लोक के माध्यम से सुना है। वे बताते थे कि भागवत किसे कहते हैं तो भा, ग, व, और त ये चार अक्षर हैं। भागवत शब्द में चारों अक्षर का तात्पर्य क्या है, तो उससे संबंधित एक श्लोक महाराज श्री के मुख से हमने सुना है। भाति सर्वेसु वेदेसु, गतिर्यस्य दुरत्याया। वरिष्ठम् सर्व शास्त्रेसु, तत्वम् च योगिनां परम्।। इस श्लोक के जो चार पद हैं, इन चारों पदों के प्रथम प्रथम अक्षर को लेकर भागवत शब्द बन गया।
गंगा और गुरु का परम् पावन स्थान है ये सिवनी।
ब्रम्हचारी जी ने आगे यह भी बताया कि ऐसी श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने सभी लोग यहां उपस्थित हुए हैं। ये सिवनी की पावन धरा है, जहां पर हमारे गुरुदेव जगद्गुरु देव जी का प्राकट्य यहां हुआ था। यहां बैनगंगा निकट से ही बह रही है, अतः गंगा और गुरु का परम् पावन स्थान है ये सिवनी।
जब भगवान की कृपा होती है तब होता है सत्संग
उन्होंने आगे कहा कि संसार में सब चीज सुलभ हैं। किन्तु सत्संग सबसे दुर्लभ है। जब तक व्यक्ति सत्संग नहीं करता तब तक उसकी बुद्धि में प्रकाश नहीं आता, विवेक की जागृति नहीं होती, तो ये सत्संग की प्राप्ति तब होती है जब-जब भगवान की कृपा होती है।
कथाव्यास ने आगे बताया कि भागवत के प्रत्येक श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अपनी गोपिकायों के साथ निवास करते हैं। इसीलिए ये भगवान की वांगमयी मूर्ति है, तो इसका दर्शनार्थ, पठनार्थ, सेवनार्थ, श्रवनार्थ, पापनाशनी इस सब में पाप नाश करने वाली है। इस अवसर पर आयोजक परिवार की श्रीमति राममणी ब्रजभूषण तिवारी श्रीमति अनुसुईया मनमोहन तिवारी,श्रीमति त्रिवेणी स्व.चंद्रमोहन तिवारी,श्रीमति सरोज अनिल तिवारी एवं समस्त गुरू परिवार ने कथा स्थल पर पहुॅचकर कथा श्रवण कर पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की है।