सिवनी – देश में लगातार भ्रष्टाचार बढता ही जा रहा है सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और परदर्शिता लाने के उददेश्य से सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया जिसके तहत भारत का हर नागरिक किसी भी विभाग से उस विभाग से सबंधित जानकारी हासिल कर सकता है लेकिन भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारियो के द्वारा या तो जानकारी नही दी जाती है या जानकारी दी भी जाती है तो भ्रामक जानकारी देकर इतिश्री करली जाती है जानकार वक्ति आगे की कार्रवाई कर आखिर जानकारी हासिल कर ही लेता है लेकिन उसे भी कई तरह कार्रवाई करनी होती है तब जाकर उसे सफलता मिलती है सूचना के अधिकार कानून आने के बाद जाने कितने भ्रष्टाचार उजागर हुए और ना जाने कितने लोगो को अपनी जान गॅंवा कर इसकी कीमत चुकानी पडी लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार पर अकुंश नही लग पाया है आपको बता दें सूचना के अधिकार के तहत 30 दिनो में आवेदक विभाग द्वारा जनकारी उपलब्ध कराना होता है जिसके बाद जानकारी ना मिलने की दशा में आवेदक 1 अपील कर सकता है जिसके बाद द्वितीय और आगे की कार्रवाई की जाती है साथ ही जानकारी उपलब्ध ना कराने पर दोषियो के खिलाफ दंड का प्रावधान भी है।

आरटीआई का उल्लंघन कर सिवनी में नटवर लालों का जादू, अन्नदाताओं को धोखा
कुछ ऐसा ही एक नजारा लखनादौन जनपद से निकलकर आया है जहां आरटीआई का उल्लंघन कर सिवनी में नटवर लालों का जादू, अन्नदाताओं को धोखा देने का खेला किया जा रहा है। साथ ही काला कारोबार का गोरखधंधा चरम पर है इसके अलावा भ्रष्ट अफसरो के साथ मिलकर सरकार बिना कत्था लगाये चूना लगाने का कार्य किया जा रहा है।
मामला आदिम जाती सेवा सहकारी समिति लखनादौन में कंडक्टर से प्रंबधक बने तुलसीराम डहेरिया द्वारा सोसायटी कार्यालय के बाहर सूचना के अधिकार का उल्लंघन बोर्ड लगाकर आरटीआई से इनकार, कानून की अवहेलना की जा रही है।
आपको बता दें जिला सिवनी में भ्रष्टाचार ने अपनी सभी हदें तोड़कर रख दी हैं। लोकतंत्र की आत्मा, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (आरटीआई) पर यहाँ खुलेआम और बेशर्मी से जघन्य हमला किया जा रहा है। आदिम जाति सेवा सहकारी समिति, लखनादौन से लेकर कहानी घंसौर और विपणन सेवा सहकारी समिति तक, हर जगह नटवर लालों का एक संगठित सिंडिकेट सक्रिय है, जिसने कानून और व्यवस्था को अपने पैरों तले कुचलकर रख दिया है। यह मामला सिर्फ जानकारी न देने का नहीं, बल्कि संविधान की हत्या और अन्नदाता के भविष्य पर एक सीधा हमला है।


भ्रष्‍ट प्रबंधकों ने 2005 के आरटीआई कानून को ठेंगा दिखाया
सहकारी समितियां किसानों की जीवनरेखा होती हैं, लेकिन इन नटवर लालों ने किसान कल्याण के नाम पर उन्हें और सरकार दोनों को धोखा दिया है। इन भ्रष्ट प्रबंधकों ने 2005 के आरटीआई कानून को तो ठेंगा दिखाया ही है, साथ ही 2025 के आरटीआई संशोधन का भी मजाक उड़ाया है, जो विशेष रूप से किसानों को सशक्त बनाने के लिए लाया गया था। प्रबंधक तुलसीराम डेहरिया, प्रमोद उकाश और वसंत कुमार साहू जैसे अधिकारी, फर्जी सूचना पटल लगाकर खुलेआम झूठ बोल रहे हैं। इन बोर्डों पर साफ-साफ लिखा है कि यह संस्था आरटीआई कानून के तहत नहीं आती। यह कृत्य सीधे तौर पर कानून की आपराधिक अवज्ञा और एक सोची-समझी धोखाधड़ी है, जिसका सीधा मकसद अन्नदाताओं को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना है।
आरटीआई कानून के कुछ प्रमुख प्रावधान, जिनका उल्लंघन हो रहा है,
आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 6(1)’ इसके तहत कोई भी नागरिक, किसी भी लोक प्राधिकरण से, जिसमें सहकारी समितियां भी शामिल हैं, जानकारी मांग सकता है।
’संविधान का 97 वाँ संशोधन, 2011’ इस ऐतिहासिक संशोधन ने सहकारी समितियों को स्पष्ट रूप से आरटीआई के दायरे में लाया, जिसे 14 फरवरी 2012 को मध्यप्रदेश सरकार ने भी अपने कानून में शामिल कर और स्पष्ट कर दिया।
त्वरित कार्रवाई के प्रावधान हैं, जिन्हें ये अधिकारी खुलेआम ठुकरा रहे
हाल ही में, किसानों के लिए आरटीआई प्रक्रिया को और सरल बनाने का उद्देश्य था। इस संशोधन में सार्वजनिक जानकारी प्रदर्शित करने और शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई के प्रावधान हैं, जिन्हें ये अधिकारी खुलेआम ठुकरा रहे हैं।
भ्रष्टाचार का नंगा नाच और उच्च अधिकारियों की मिलीभगत
जागरूक नागरिक हरीशचंद्र गोल्हानी द्वारा जनसुनवाई मंगलवार को दायर की गई आरटीआई याचिका सिर्फ जानकारी का आवेदन नहीं, बल्कि इस आपराधिक सिंडिकेट के घोटालों का विस्फोटक आरोप पत्र है। इन नटवर लालों ने किसान कल्याण की योजनाओं को पूरी तरह लूट खाया है और लाखों-करोड़ों की अनियमितताओं को छिपाने के लिए दस्तावेजों को रोका है। जानकारी न देने के बाद, ये भ्रष्ट प्रबंधक अपने गुर्गों के माध्यम से आरटीआई कार्यकर्ताओं को फोन पर परेशान कर रहे हैं और धमका रहे हैं। इससे भी बढ़कर, ये प्रबंधक हर बार जिला रजिस्ट्रार का नाम लेकर यह कहते हैं कि हमें अधिकार नहीं है। यह एक गंभीर सवाल खड़ा करता है कि क्या इस संगठित भ्रष्टाचार में जिला रजिस्ट्रार जैसे उच्च अधिकारी भी शामिल हैं
इस जानकारी का उपयोग करके आप संबंधित अधिकारियों को बता सकते हैं कि आरटीआई अधिनियम, 2005 को भारत सरकार द्वारा राजपत्र में 15 जून, 2005 को अधिसूचित किया गया था, और यह पूरे देश में लागू होता है, जिसके लिए किसी भी सहकारी समिति को अलग से राजपत्र की आवश्यकता नहीं है।


’जनता की कलेक्टर जैन से अंतिम अपील दोषियो के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग’
अब सभी की निगाहें जिला कलेक्टर सुश्री संस्कृति जैन पर टिकी हैं, जिन्हें जनसुनवाई में सीधे आवेदन सौंपा गया है। यह सिर्फ एक प्रशासनिक शिकायत नहीं, बल्कि कानून के राज और संविधान के सम्मान की कसौटी है। जनता आपसे अपील करती है कि इस नटवर लाल सिंडिकेट पर तत्काल लगाम लगाई जाए।
आपसे विनती है कि आप त्ज्प् कानून का व्यापक प्रचार-प्रसार करें, किसानों तक यह संदेश पहुँचाएँ कि सहकारी समितियाँ कानून के दायरे में आती हैं। इस अपराध को जड़ से खत्म करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करें और सार्वजनिक रूप से घोषणा करें कि दोषियों पर मुकदमा चलाया जाएगा। यह वक्त कठोर कार्रवाई का है, सिर्फ आश्वासन का नहीं।