वैश्विक संबंधों की दृष्टि से आज के परिवेश में महात्मा गांधी एवं उनके सिद्धांतों की आवश्यकता सर्वोपरि – डॉ. के.के. चतुर्वेदी
आज के बदलते वैश्विक पदिृश्य में जहॉं विश्व समुदाय एक दूसरे को आंख दिखा कर अपनी श्रेष्ठता साबित करने, मानवता एवं मानवीय मूल्यों को नष्ट करने अमादा है। जिसके प्रत्यक्ष उदाहरण के रूप में रूस-यूक्रेन, इजराइल-फिलीस्तीन जैसी साधन संपन्न शक्तियों ने मनुष्य के जीवन को खिलौना समझकर उसके प्रति असंवेदनशीलता की चादर ओढ़ रखी है। प्रतिदिन बहुतेरे लोग नई तकनीकि द्वारा विकसित छद्म यु़द्ध में काल कलवित हो रहे हैं, जिसका कहीं तक अंत दिखता प्रतीत नहीं होता। ऐसे परिदृष्य में भारत एवं भारत के गांधीवादी मूल्यों का समूचे विश्व में शांति, सद्भाव एवं प्रगति के लिए अग्रेसर की भूमिका निभाना महत्वपूर्ण हो गया है। क्योंकि भारत ही है, जिसकी तरफ विश्व समुदाय, इन अघोषित यु़द्धों से मुक्ति पाने टकटकी निगाह से देख रहा है। जिससे भारत एवं भारत की गांधीवादी अंतर्राष्ट्रीय छवि पर सभी की नजरे टिकी हुई है।
आज सिर्फ गांधीवाद के आधारभूत सिद्धांत सत्य और अहिंसा की महज आवश्यकता ही नहीं है? बल्कि पूरे विश्व के लिए इसकी अनिवार्यता ही समूचे विश्व को वैश्विक समुदाय पर थोपे गए इन महायुद्धों से बचा सकती है।
युद्ध किसी भी समस्या का हल नही, वार्तालाप, मानीवय मूल्यों का स्थापन, दुष्कर जीवन शैली को साधन संपन्न बनाना एवं अर्थलोलुपता तथा अर्थलिप्सा ने समूचे विश्व को अपनी श्रेष्ठता का ढ़िंढोरा पीटने कई साधन संपन्न राष्ट्रों को मजबूर कर दिया है जो खोखली मानप्रतिष्ठा के चक्कर में मानव एवं माननीय मूल्य आहत करने तुले हुए हैं। ऐसे में गांधीवादी देश भारत एवं गांधी के सिद्धांतों की विश्व को इन परिस्थितियों से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती हैं।
यह समीचीन है कि महात्मा गांधी की उपादेयता एवं सिद्धांतो का अनुशीलन पूरा विश्व करता है। परन्तु लगभग सौ देश गांधी के शांति, अमन एवं भाई-चारे के सिद्धांत पर चलने में अपनी भलाई समझते हैं जिनमें दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैण्ड, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, पौलेण्ड, कांगो आदि देशों ने राष्ट्रीय संत महात्मा गांधी को 20वीं सदी का शांति दूत मानकर 2007 से ‘‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस‘‘ के रूप में प्रत्येक वर्ष को मनाने का संकल्प लिया है जो प्रत्येक वर्ष नई-नई थीम के साथ मनाया जाता है।
सन् 2023 में गांधी जयंती की थीम ‘‘एक तारीख एक घंटा एक साथ,‘‘ जिसके तहत स्वच्छता के लिए नागरिकों से श्रमदान का आव्हान किया गया था। इस वर्ष भी नई थीम के साथ गंाधी के मजबूत पक्षों को लोगों के मूल्यनार्थ प्रस्तुत किया गया है।
महात्मा गांधी का मानना था कि ‘‘शक्ति दो प्रकार की होती है, एक दण्ड के भय से प्राप्त होती है तो दूसरी प्रेम के कार्यों को जीवंत बनाने, प्रेम पर आधारित शक्ति दण्ड के भय से प्राप्त शक्ति से हजार गुना अधिक प्रभावी और स्थायी है।‘‘
आज के विध्वसंक समाज में जहॉं गांधी ने मानव समाज कल्याण के लिए अनेक आंदोलनों चंपारण, खेड़ा, असहयोग, सविनय अवज्ञा, भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर राष्ट्रीय संप्रभुता रखी। वहीं शोषण विहीन समाज के लिए गांधी जी ने सर्वोदय समाज की स्थापना की।
गांधी जी ने वैश्विक समुदाय के उत्थान के लिए सत्य, अहिंसा, सर्वधर्म समभाव, विनम्रता, शांति, मानवीय मूल्य, शिक्षा, मुश्किलों से लड़ कर उबरने की जो शिक्षा दी है। उससे आज विश्व समुदाय को सीख लेकर झूठे अहंकार एवं अनगिनत इच्छाशक्ति त्यागकर मानवीय मूल्य संर्वधन एवं सृजन करने की आवश्यकता है। क्योंकि गांधीजी का मानना था ‘‘राष्ट्र का निर्माण और नागरिकों की सुरक्षा राष्ट्र का धर्म है। परन्तु पड़ोसी से सुरक्षा का धर्म संपादन शांति के सहारे ही लिया जा सकता है। भय फैलाकर कुछ क्षणों की शांति ही ली जा सकती है, परन्तु शांति समग्र शांति की अभिलाषा से उत्पन्न होती है जो सर्वभौम एवं सत्य है।
गांधीजी का मानना था कि शांति की बात करने वाला राष्ट्र कमजोर नहीं हो सकता? बल्कि वह अशांति को शांति में बदलकर नैतिक, जीवंत और मानवीय मूल्यों का संरक्षण कर सकता है। आज के परिवेश में भारत एवं भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की गांधीजी के नवमूल्यों के स्थापन की जिम्मेदारी वांछनीय है। पूरा विश्व अघोषित युद्धों की परिणति जानता है? एवं इसको रोकने में भारत की भूमिका की स्वीकार्यता भी पूरा विश्व जानता है। अतः भारत पर आज सभी की नजरें सुख शांति और संवेदना के प्रतीक महात्मा के गांधीवादी मूल्यों के स्थापन करने के लिए अग्रणी भूमिका निभाने के लिए पलक पावड़े बिछाये प्रतीक्षारत है, कि कब भारत विश्व को शांति का संदेश देकर युद्ध के अमानवीय पराक्रम को पराजित करेगा।