जैसे मातृ देवो भव पित्र देवो भव होता है वैसे ही पुत्र देव भव: भी क्यों नहीं होता……………….डाँ.के.के.चतुर्वेदी’
सिवनी – दिनांक 01 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार को डी.पी. चतुर्वेदी विधि महाविद्यालय सिवनी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यशाला में उक्त आशय के विचार डी.पी. चतुर्वेदी महाविद्यालय के संचालक डॉ के. के. चतुर्वेदी द्वारा व्यक्त किए गए उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि पुरातन समय में भारतीय संस्कृति के अंतर्गत आश्रम प्रणाली हुआ करती थी जिसके अंतर्गत जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया था और इस आश्रम प्रणाली को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संजोया गया था जिसका मूल आधार संस्कृति संस्कार समाज और व्यक्ति विकास होता था। कार्यशाला में डी. पी. चतुर्वेदी महाविद्यालय के संचालक डाँ के. के. चतुर्वेदी जी ,आमंत्रित अतिथि वरिष्ठ जनों में प्रख्यात समाज सेवी शंकर लाल जी सोनी, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षाविद छिद्दीलाल श्रीवास अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन के ब्रांड एंबेसडर वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तपिश, सेवानिवृत प्राचार्य नाथूराम धुर्वे, एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ देवी शंकर सोनी , और डी. पी. चतुर्वेदी विधि महाविद्यालय सिवनी के संचालक डाँ रामकुमार चतुर्वेदी मंचासीन रहे। कार्यशाला का प्रारंभ मंचासीन अतिथियों के द्वारा माता सरस्वती के पूजन के साथ प्रारंभ किया गया इसके उपरांत विद्यार्थियों के द्वारा सरस्वती वंदना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किए गए तत्पश्चात कार्यशाला का संचालन करते हुए विधि विभागाध्यक्ष एडवोकेट अखिलेश यादव के द्वारा मंचासीन अतिथि वरिष्ठ जनों का परिचय प्रस्तुत किया गया और अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाने के पीछे जो संयुक्त राष्ट्र संघ की मूल भावना और वरिष्ठ जन भरण पोषण अधिनियम 2007 को पारित करने का उद्देश्य और उसके प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।तत्पश्चात अतिथियों का सभी विधि सेमेस्टर के विद्यार्थियों के द्वारा तिलक लगाकर वह पुष्प हार से स्वागत अभिनंदन किया गया। डाँ के. के. चतुर्वेदी, द्वारा सभी अतिथि वरिष्ठ जनों का अंगवस्त्र,श्रीफल व पुष्प हार से सम्मान किया । अतिथियों के उद्बोधन के अंतर्गत शंकर लाल सोनी के द्वारा महाभारत के प्रसंग का उल्लेख करते हुए देव और दानव के अलग-अलग व्यक्तित्व एवं कलयुग में एक ही व्यक्ति में दोनों का समावेश के बारे में बताया गया और यह भी बताया गया की जीवन में बुजुर्गों की क्या अहमियत होती है। छिद्दी लाल श्रीवास द्वारा यह व्यक्त किया गया कि या तो संकल्प मत लो और यदि संकल्प लेते हो तो उसे पूरा करने की ठान लो। मैने भी जीवन में 1965 में एक संकल्प लिया था कि जीवन भर प्रतिदिन एक सेवा का कार्य करूंगा जिसे मैं आज तक पालन कर रहा हूं। मेरी सक्रियता के कारण आज 86 वर्ष की उम्र में भी मेरा नाम भारत सरकार के पास पद्मश्री सम्मान के लिए गया हुआ है। जगदीश तपिश ने अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए कहा कि मैं तो भूतपूर्व युवा हूं और आज का बुजुर्ग पूर्व का युवा ही था उसने जीवन में जो अनुभव लिया है उससे भावी पीढ़ी का एक बेहतर मार्गदर्शक होता है बुजुर्ग। देवीशंकर सोनी ने सभी को आशीर्वाद देते हुए आज के दिवस की शुभकामनाएं दी। नाथूराम धुर्वे ने कहा कि पहले विद्याश्रम हुआ करते थे जहां अध्ययन, ज्ञान, संस्कार मिलते थे जिससे जीवन सार्थक होता था लेकिन अब विधालय हो या महाविद्यालय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ज्ञान और संस्कार नहीं तो अब वृद्धाश्रम बन रहे हैं। संस्था के संचालक डाँ रामकुमार चतुर्वेदी ने आभार प्रदर्शन करते हुए व्यक्त किया कि हमारी शिक्षा का जो पाश्चात्यीकरण हुआ है उसका दुष्परिणाम हमें आज संस्कार हीनता के रूप में देखने को मिल रहा है। समाजवाद के वास्तविक स्वरूप के बजाय हमने उसके औपचारिक स्वरूप को संविधान की प्रस्तावना में सम्मिलित किया गया है। कार्यशाला के समापन पर महाविद्यालय के वरिष्ठ जन कर्मचारी श्रीवास काका व देवीसिंह बघेल का अंगवस्त्र श्रीफल व पुष्प हार से सम्मान डॉ रामकुमार चतुर्वेदी द्वारा किया गया। तत्पश्चात सभी अतिथियों, विधार्थियों का स्वाल्पाहार कराया गया। कार्यशाला के संयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रभारी श्रीमती अन्नपूर्णा मिश्रा सहित सभी प्राध्यापक गणों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कार्यशाला में प्राध्यापक गणों में डॉ महेंद्र नायक,श्रीमति अन्नपूर्णा मिश्रा, अमन चैबे, दीपक पटले, श्रीमति आकांक्षा तिवारी देवीसिंह निर्मलकर, रुद्राक्ष चतुर्वेदी एवं एल. एल. बी. व बी. ए. एल. एल. बी. प्रथम तृतीय व पंचम सेमेस्टर के सभी विद्यार्थियों की सहभागिता व गरिमामय पूर्ण उपस्थिति रही। व्यवस्था में राजू बघेल, आकाश यादव अंकन लाल रजक, देवीसिंह बघेल, श्रीवास काका का सहयोग रहा।’