सिवनी – गुरूवार को नगर के प्रसिद्ध मठमंदिर में दो पक्षो के बीच शंकराचार्य पद को लेकर विवाद गरमा गया इस मामले में प्रज्ञानानन्द के बैनर लगाये गए जिसमें उन्हे दो पीठो का शंकराचार्य लिखा गया विरोध इसी बात का था परमहंसी से पधारे ब्रम्हलीन द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के परम शिष्य ब्रम्हविद्यानंदजी ने बताया कि शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने को एक विधान है जिसके तहत ही शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जाता है लेकिन सिवनी में एक महामंडलेश्वर को एक छोड दो दो पीठ का शंकराचार्य बनने के पोष्टर लगाये गए है जिसके विरोध में गुरूभक्तो ने जिला कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौपते हुए ज्ञापन में लिखा है कि सिवनी जनपद प्रातःस्मरणीय ज्योतिष्पीठ एवं शारदापीठ द्वारका के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज का जन्मस्थल रहा है। आदि शङ्कराचार्य जी के द्वारा लगभग २५०० बर्ष पूर्व भारत में स्थापित चारों गुरुपीठों में २५०० बर्ष से चार अलग-अलग आचार्य अनविच्छिन्न रूप से अभी तक अभिषिक्त होते आए। प्राप्त इतिहास में दो पीठ पर एक ही आचार्य हुआ हो यह गौरव हमारे सद्गुरुदेव ज्योतिष्पीठ एवं शारदापीठ द्वारका के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज को ही प्राप्त है।पूज्य महाराजश्री के ११ सितम्बर २०२२ को ब्रह्मलीन होने पर उनकी वसीयत के अनुसार उनके मात्र दो ही सुयोग्य दण्डी संन्यासी शिष्य जिनमें प्रथम पूज्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी महाराज एवं द्वितीय पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज को क्रमशः शारदापीठ द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ पर १२ध्११ध्२०२२ को परमहंसी गंगा आश्रम में लाखों गुरुभक्तों के मध्य अभिषिक्त किया गया। इसके बाद २६ सितम्बर २०२२ को दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ जी महाराज ने अपने शाङ्करपीठ श्रृंगेरी में उक्त दोनों जगद्गुरुओं का अभिषेक किया। इसके बाद १४ अक्टूबर २०२२ को गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर प्रांगण में विराजित पारंपरिक चबूतरे पर शारदापीठ द्वारका के रूप में भव्य समारोह के साथ स्वामी सदानन्द सरस्वती जी महाराज का अभिषेक हजारों गणमान्य लोगों की उपस्थिति में श्रृंगेरी शङ्कराचार्य के उत्तराधिकारी पूज्य विधुशेखर भारती जी महाराज ने किया गुजरात के चैरिटी कमिश्नर ने अभिषेक का संज्ञान लेते हुए अपनी स्वीकृति प्रदान की वह पत्र भी इस पत्र के साथ संलग्न है। इसके बाद उसी दिन शारदापीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज का ज्योतिष्पीठ पर अभिषेक पूज्य विधुशेखर भारती जी ने विद्वानों एवं गणमान्य लोगों के समक्ष किया। चूंकि ज्योतिष्पीठ पर एक वाद लंबित है अतः १७ अक्टूबर २०२२ को सुप्रीमकोर्ट ने अन्य किसी को भी ज्योतिष्पीठ पर अभिषिक्त होने की निषेधाज्ञा लागू कर दी। स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का ज्योतिष्पीठ पर अभिषेक उक्त निषेधाज्ञा के पूर्व हो चुका था। उपर्युक्त आलेख मूल बिषय की भूमिका मात्र है। मूल विषय है प्रज्ञानानन्द का स्वयं को दो पीठ का शङ्कराचार्य ख्यापित कर धनसंग्रह करना एवं राजनैतिक पार्टियों से सांठगांठ करना। इस व्यक्ति को हमारे सद्गुरुदेव ने निरंजनी अखाडे का आचार्य महामण्डलेश्वर बनाया था एवं अनौपचारिक रूप से गिरिनामा संन्यास दिलवाया था किंतु वहाँ भी इसके कदाचार से अखाडे वालों ने इसे हटा दिया। अब यह व्यक्ति गिरि उपनाम छोडकर सरस्वती उपनाम से स्वयंभू शङ्कराचार्य बन बैठा है जिसे हम सिवनी के गुरुभक्त सहन नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा के बाद भी प्रज्ञानानन्द ने बहुत भौडे तरीके से अयोग्य लोगों से अपना दोनों पीठों पर अभिषेक कराया एवं स्वयं को शङ्कराचार्य कहने लगा। महानुशासन जो कि धार्मिक संविधान है उसके विरुद्ध जाकर दो पीठों पर एकसाथ अपना अभिषेक कराकर धार्मिक मर्यादा का हनन किया। हमारे सद्गुरदेव का यह ऐतिहासिक गौरव था कि वे एकमात्र दो पीठों के शङ्कराचार्य थे, उनके इस गौरव को यह प्रज्ञानानन्द नामक व्यक्ति कलंकित कर रहा है। हम सिवनी जिले के गुरुभक्त इसकी तीन्न भर्त्सना करते हुए आपसे निवेदन करते हैं कि प्रज्ञानानन्द को दोनों पीठों का शङ्कराचार्य कहने से रोका जाय अन्यथा हम सिवनी के गुरुभक्त तीव्र विरोध की ओर अग्रसर होंगे। कोर्ट की निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने वाला यह व्यक्ति अपराधी है इसका संज्ञान प्रशासन ले एवं इसे आपराधिक कृत्या करने से रोके ।