सिवनी – भगवान चर्तुभुजधारी श्रीकृष्ण ने रूकमणी जाम्बवंति सत्याभामा कालिन्दी मित्रबिन्दा सत्या भद्रा लक्ष्मणा समेत एक हजार आठ कन्याओ को दुष्टो के चुंगल से मुक्त किया ऐसी स्थिति में भगवान से उन कन्याओ ने आग्रह किया हम कहा जायेगे हमसे कौन विवाह करेगा तो भगवान ने उनके आग्रह पर उन सभी से विवाह किया कुल मिलाकर यू कहे तो त्रेता में जो भी नर नारी भगवान का सुंदर स्वरूप जान जैसी ईच्छा उनके प्रति जाहिर भगवान ने उन सभी की मनोकामना द्वापर में आकर पूरी की। हमें अपने अंदर व्याप्त सात प्रकार की काम को्रध मद लोभ रूपी विकारो मुक्त होना होगा तभी भगवतप्राप्ति संभव है। इसके अलावा सुदामा चरित्र का बडा ही मार्मिक चित्रण करत हुए बताया कि सुदामा ने मन बुद्धि साहित पाॅच इन्द्रियो पाॅच ज्ञानेन्द्रियो को अपने वश मे कर लिया वही सुदामा है। ब्राम्हणो का सबसे बडा धन संतोष,विद्या और ज्ञान है जब सुदामा जी की पत्नि को मालूम हुआ उनके मित्र चर्तुभुजधारी तीन लोक के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण है तो उन्होने उनके पास जाकर सहायता लेने की बात कही और मित्र से सहायता के लिए इसलिए कहा कि सुदामा का परिवार इतना दरिद्र था कि जब रात को उनके बच्चे दूध मांगते तो सुशीला चाॅवल का धोवन बच्चो को दूध समझकर दे देती इसलिए कहा गया है कि भगवान को यदि चाॅवल धोकर चढाना है तो सिर्फ दो ही बार चाॅवल धोना चाहिए तीन बार नही।

ब्राम्हण ज्ञानवान और संतोषप्रिय होना चाहिए,क्षत्रिय को वीरवान होना चाहिए,वैश्य को धनवान होना चाहिए उसे श्रेष्ठ बताया गया है। किसी के घर कुछ माॅगने या अपेक्षा की दृष्टि से जा रहै है तो पाॅच बातें अपने घर पर रखकर जाईये पहला मान,सम्मान बडाई,स्वाभिमान,स्नेह और बडप्पन। हम जब भी अपने गुरू, माता पिता और मित्र और बेटी के यहाॅं जाये तो कभी खाली हाथ नही जाना चाहिए। क्योकि भगवान भाव के भूखे होते है आगे हितेन्द्र शास्त्री ने बताया कि जब सुशीला पडोस के चार घरो में इसलिए माॅगने गई क्योकि भगवान भाव के भूखे होते है। इस प्रकार सुदामा के परिवार का बहुत की मार्मिक चित्रण करते हुए आगे सादीपनी आश्रम उज्जैन की चर्चा करते हुए बताया कि जब श्रीकृष्ण और सुदामा शिक्षा प्राप्त करने गये तो सुदामा ने अकेले ही चने क्यो खाया इस प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए एक कहानी सुनाई जिसमें बताया कि एक बहुत ही भगवान की भक्त वृद्ध महिला थी जिसके घर पर चने की पोटली थी जिसके घर चोर चोरी के उददेश्य से चले गये सोचा पोटली में जेवरात धन आदि है लेकिन उस वृद्धा ने तो चने अपने खाने के लिए रखे थे लेकिन उसने श्राप दे दिया कि जो भी इस चने को खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा बाद में चोरो ने उस पोटली को सांदिपनी आश्रम में गुरूमाता की रसोई में छोडकर चले गए जिसे गुरूमाता ने ईर्धन के लिए लकडी लेने गये भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा को पोटली पकडा दी कि जब भी भूख लगे इसे खा लेना लेकिन सुदामा ने जैसे ही अपने नेत्र बंद किये तो पता चला ये चने तो श्रापित है तो सुदामा ने सोचा मेरा मित्र तो तीन लोक का स्वामी और यदि यही दरिद्र हो गया तो तीनो लोको का क्या होगा यह सोच सारे चने स्वयं खा लिये और उस दरिद्रता को अपने उपर ले लिया सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र की सारे दुख और परेशानियो को धारण अपने उपर ले ले। जिसके बाद आगे बताया कि जब सुदामा जी द्वारिका जाने निकले और रास्ते में विश्राम करने एक वृक्ष के नीचे रूके जैसे ही सुदामा जी की आॅखे बंद हुई तीन लोक के स्वामी ने उस वृक्ष को सीधे द्वारिका की सीमा में स्थापित कर दिया। भगवान किसी का कुछ भी उधार या बकाया नही रखते बाकायदा ब्याज समेत पाई – पाई चुकाते है। जिसके बाद दर – दर से आया सुदामा भिखारी, क्यो मै बताउ क्या मै सुनाउ,एक नही दुख जो मन के छुपाउ। घर – घर की जानते है तेरे दर पे आया सुदामा भिखारी। भजन पर सारे भक्त झूम उठे। इस अवसर पर द्विपीठाधीश्वर ब्रम्हलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के परम सेवक शारदानंद जी भी पधारे। जो अपने गुरू मित्र और भाई के यहां चोरी करता है उसे उससे 100 गुना अधिक चुकाना होता है। जिसके बाद भगवान ने अपने मित्र का खूब सम्मान किया स्वागत सत्कार किया और सुदामा की दरिद्रता समाप्त की। जब हम किसी के यहां जाये और अगला हमें अपने घर में कहां स्थान देता है उससे पता चलता है कि अगले के दिल में हमारे प्रति क्या और कितना सम्मान और स्नेह है। जिसके बाद दत्तात्रेय प्रसंग पर बताया कि हमें जीवन में जिससे भी कुछ सीखने मिल जाये वही गुरू है जीवन में पेड पौधे,नदियाॅ आकाश,धरती सूर्य,चंद्रमा आदि से कुछ ना कुछ सीखने मिलता है।