सिवनी – नारद जी भगवान के प्रतिनिधि है नारद जी की उत्पत्ति भगवान की जघां से है और हम जिससे अधिक प्रेम करते है उसे अपनी गोद में बिठाते है। दो दोस्तो की कहानी का वर्णन करते हुए नीलेष षास्त्री जी ने बताया कि दो दोस्तो में से एक ने धोखा दिया तो उसे रेत पर लिखा लेकिन दूसरे ने दूसरे दोस्त द्वारा किए गए उपकार को छेनी हथौडी से पत्थर पर लिख दिया ताकि बुराई कम समय में नश्ट हो जाए और अच्छाई अमर हो जाए। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि अच्छाई का प्रचार होना चाहिए यदि हमें हमेषा सत्य का साथ देना चाहिए। नीलेष षास्त्री द्वारा नगर के बाहुबली लाॅन के चैकसे परिवार द्वारा आयोजित यह 288 वी कथा करने जा रहे जो कि 15 राज्यो मे कथा कर रहे है मंथरा का उदारण देते हुए बताया कि मंथरा एक छोटी सी बात को लेकर वह भगवान को वनवास करा देती है। श्रीमदभागवत समाज भागवत के अनुसार भागवतजी की अंतिम षब्द है परम भागवत जी के चरणो में जाने से हमे षरणागति की प्राप्ति होती है जिस तरह हम स्वयं वाहन चलाते है तो आगे चलते समय दाॅए बाॅंए देखते लेकिन जब हम बस में चलते है तो अपने आप को चालक के भरोसे छोड देते है उसी प्रकार हम जब हम अपने आप को भगवान को समर्पित कर देते है तो भगवान हमारी नैया पार लगा देते है। जो विवेकी पुरूश है वह भेड की भीड को देखकर नही चलता जो व्यक्ति बिना विचारे चलता है इतने सत्संग होने के बाद भी समाज में सुधार ना होने के सवाल पर बताया कि फैक्ट्री मे हजारो छाते तैयार होते है लेकिन बारिष से बचने के लिए हमे छाता स्वयं खोलना पडेगा विवेकी पुरूश स्वयं का सुधार करता है सबसे पहले हमे अपने अंदर की बुराई को नश्ट करना होगा तब हम समाज की बुराई को समाप्त कर पायेंगे। जिस तरह गधी ढेर सारे बच्चे पैदा करके वह हमेषा बोझ ढोते है लेकिन वही दूसरी ओर षेरनी एक बच्चे को जन्म देकर निर्भय होकर जंगल में विचरण करती है उसी प्रकार अपने आप को सक्षम और ज्ञानवान बनाने से ही समाज में सुधार होगा भीड से नही।