सिवनी – नगर के डीपी चतुर्वेदी महाविद्यालय बारापत्थर मेंआयोजित जनपद संस्कृत सम्मेलन में बाहर से आये अतिथियो ने बताया कि हमारे देष में जहां सस्कृत जैसी देव भाशा का पतन हो रहा है तो वही विदेषो में इसकी डिमांड बढती जा रही है कि हमे सस्कृत सीखना है जानना है योग सीखने है सस्कंृत सीखकर हमे उसे अपने व्यवहार में ला सकते है हम संस्कृत सीखकर वह देष और दुनिया में अपना नाम कर सकता है जिस प्रकार बाबा रामदेव संस्कृत का एक विशय पकडकर उन्होने इतना बडा एम्पायर खडा कर दिया। कोई भी अक्षर नही है जो मंत्र नही है उसी प्रकार ऐसी कोई वनस्पति नही है जो औशधि ना हो। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति अयोग्य नही है। यदि व्यक्ति अपने अंदर के गुण को जान ले तो वह बहुत बढिया काम कर सकता है। सारी भाशाओ का मूल संस्कृत है। आज जलवायु परिवर्तन हो रहा है इसलिए पूरा विष्व भारत की ओर आषा भरी निगाहो से देख रहा है । हमारे समाज को जगाने की जरूरत है संस्कृत के महत्व को बताने समझाने की जरूरत है। बिहार के डीजीपी का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्होने संस्कृत विशय पढकर इतने बढे अफसर बने। संस्कृत विशय को लेकर बच्चे हर क्षे़त्र मंें आगे पढाई कर सकते है रोजगार के अवसर खोज सकते है। संस्कृत हमारे जीवन में रोजगार ला सकती है हमे चरित्रवान बना सकती है। आगे डीपी चतुर्वेदी महाविद्यालय के चेयरमैन के के चतुर्वेदी ने बताया कि सस्कृत है तो सबकुछ है संस्कृत है तो संस्कृति है और संस्कृत नही है तो कुछ भी नही संस्कृत से षास्त्र है संस्कृत षस्त्र भी है और संस्कृत साक्ष्य है संस्कृत को किसी भाशा की जरूरत नही है चारो वेद संस्कृत है। संस्कृत रोजगार की भाशा है संस्कृत स्वरोजगार की भाशा है हम संस्कृत सीखकर रोजगार स्वरोजगार पा सकते है।